Wednesday, November 24, 2010

अश्विनी कुमार ने अपना दंड स्वयं तय किया

अश्विनी कुमार दत्त जब हाईस्कूल में पढ़ते थे, उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय का नियम था कि सोलह वर्ष से कम उम्र के विद्यार्थी हाईस्कूल की परीक्षा में नहीं बैठ सकते। इस परीक्षा के समय अश्विनी कुमार की उम्र 14 वर्ष थी। किंतु जब उन्होंने देखा कि कई कम उम्र के विद्यार्थी सोलह वर्ष की उम्र लिखाकर परीक्षा में बैठ रहे हैं तो अश्विनी कुमार को भी यही करने की इच्छा हुई।

उन्होंने अपने आवेदन में सोलह वर्ष उम्र लिखी और परीक्षा दी। यही नहीं, इस प्रकार वे मैट्रिक पास हो गए। इसके ठीक एक वर्ष बाद जब अगली कक्षा की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, तब उन्हें अपने असत्य आचरण पर बहुत खेद हुआ।

उन्होंने अपने कॉलेज के प्राचार्य से बात की और इस असत्य को सुधारने की प्रार्थना की। प्राचार्य ने उनकी सत्यनिष्ठा की बड़ी प्रशंसा की, किंतु इसे सुधारने में असमर्थता जाहिर की। अश्विनी कुमार का मन न माना, तो वे विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से मिले, किंतु वहां से भी उन्हें यही जवाब मिला। अब कुछ नहीं किया जा सकता था।

किंतु सत्यप्रेमी अश्विनी कुमार को तो प्रायश्चित करना था। इसलिए उन्होंने दो वर्ष झूठी उम्र बढ़ाकर जो लाभ उठाया था, उसके लिए दो वर्ष पढ़ाई बंद रखी और स्वयं द्वारा की गई उस गलती का उन्होंने इस प्रकार प्रायश्चित किया। सार यह है कि सत्य का आचरण कर व्यक्ति नैतिक रूप से मजबूत होता है और नैतिक दृढ़ता न केवल उसे जीवन में सफल बनाती है बल्कि समाज के मध्य वह आदरणीय भी होता है।

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